में ख्वाब नहीं कोई .. ..हाकीकत हु देख.. कुछ पल ठहर ... ..मुझे समझ कर तो देख... ना कोई झोंका हु पवन का .. ना अंधी हु कोई ... मन्द मन्द सासे तुझमे ... बिखरती हुई हु देख... छलती हुई दुनिया में ... नीशछल हु देख... मुरत be-वफाई की नहीं ... वफा की सुरत हु देख.. अब तो आँखो को खोल .. उतार कर ये पत्ती फेक ... आज मुझे असली तेरी आँखो से तु देख.. बहुत देखा है तूने .. अक्श मुन्द कर अब तक ... आज अंध_पन त्याग ... ओर उज्यारे में मुझे देख.. ************* ♧♧♧♧#शिवाली♧♧♧♧♧
My New Poem _____________ ***Aurat*** ♡♡♡♡♡ सो रंग ढ़लती आयी ... कितना जलती आयी ... क्यो ...हर परिक्षा आखिर .. ......................एक #औरत ही देती आयी अबला भी कहलायी ... अम्बा भी कहलायी. ... माँ ..बेटी ..बहन ...बहु ... ना जाने कितने रुप में ... .........................है तो #औरत ही समायी ..... चन्द रूपयो की लिए दी गई जलायी ... मार्दो की दासी कहलायी ... समाज की हर गंदगी ...क्यो .... ...........................सर #औरत के डूली आयी .... आपराड़बोध तो आदमी भी है ... वासना से लिप्त तो आदमी भी है ... फिर भी ना जाने क्यो .... ...........................हर ऊंगली #औरत पर ऊठती आयी .... इंसानो की इस बस्ती में ... शर्म ने भी ना आँख उठाई ... ज़हा देखो ... .........................वहा पर तो #औरत ही लूटती आयी ... .. आज भी है यही मंजर ..... किसने कहा ...क्रंती आयी .... देखो ना पलके खोल कर ...... आज भी .... नए ल्फजो में #औरत ही दोशी कहलायी ... नहीं है केद में आज भी अपराधी ..... ......................आज भी #औरत ने ही अपनी आबरू
👏👏
ReplyDeleteTysm😊😊
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