Aurat. ...a poem for all the rape victims

My New Poem
_____________
***Aurat***
♡♡♡♡♡

 सो रंग ढ़लती  आयी ...
कितना जलती आयी ...
क्यो ...हर  परिक्षा आखिर ..
......................एक #औरत  ही देती आयी
अबला  भी  कहलायी ...
अम्बा भी कहलायी. ...
माँ ..बेटी ..बहन ...बहु  ...
ना जाने कितने रुप  में ...
.........................है तो  #औरत  ही समायी .....
चन्द  रूपयो  की लिए  दी गई जलायी ...
मार्दो की दासी  कहलायी ...
समाज की हर गंदगी ...क्यो ....
...........................सर #औरत  के डूली  आयी ....
आपराड़बोध  तो  आदमी भी है ...
वासना  से लिप्त  तो आदमी  भी  है ...
फिर भी ना जाने क्यो ....
...........................हर ऊंगली #औरत पर  ऊठती आयी ....
इंसानो  की  इस  बस्ती में ...
शर्म  ने भी ना आँख उठाई ...
ज़हा  देखो ...
.........................वहा पर  तो  #औरत  ही लूटती  आयी ...
..
आज भी है यही मंजर .....
किसने कहा ...क्रंती  आयी ....
देखो  ना पलके  खोल कर ......
आज भी ....
नए  ल्फजो  में  #औरत  ही दोशी  कहलायी ...
नहीं है केद  में आज भी  अपराधी .....
......................आज भी #औरत  ने ही अपनी आबरू  गवाकर  किसी  और  की कीए की सजा  पायी ............
.................Special Dedication to all the rape victims...........
*****शिवाली *******

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